असमंजस में..


आसक्ति में और ना कुछ बस

छिपी अश्रुओं की हाला,

पर एकाकी जीवन तो है

मधु से रीता इक प्याला,

सन्नाटे औ’ कोलाहल में

इसे चुनूँ या उसे चुनूँ,

भीतर मूक तमा है भीषण

बाहर बहकी मधुशालाI

-पीयूष यादव

मूक तमा – चुप अँधेरा

 

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    जीवन, मृत्यु-कलश और गंगा


    गंगा का आकर्षण अक्सर अंतिम चौखट तक साथ देता है. ये अद्भुत है.

    संसृति के नियमों में सिर्फ आकर्षण ही स्थायी है..ज़िन्दगी का क्रम तो चलता रहता है. जहाँ आज मैं हूँ, कल कोई और होगा. जो भाव मेरे मन में हैं, कल किसी और के मन में होंगे ..

     

    गंगा के पावन तट पर इक

    मीठी कॉफ़ी का प्याला,

    सुरसरिता का आकर्षण औ’

    उस पर श्रद्धा की हाला,

    मुझको ये आकर्षण कल फिर

    गंगा तट तक लायेगा

    तब विस्मित दूर वहाँ होगा

    मैं नित बहती मधुशालाI

    -पीयूष यादव

     

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      गंगा


      ऋषिकेश में गंगा को बहता देखकर लगता है कि कितने प्यासे रहे होंगे ये गंगा के किनारे … हरे-भरे शिवालिक पर्वत साकी से लगते हैं और तृष्णा से व्याकुल उन किनारों की प्यास बुझाती गंगा, मधुशाला सी नज़र आती है.

       

      बेसुध आज लुटाती देखी

      सकल सुमोहित मधुहाला,

      फिर यौवन के साथ बहे कल

      विस्मित है पीनेवाला,

      घोर तृषित ये साहिल ऐसे

      जिनकी प्यास बुझाने को,

      साकी हैं शादाब शिखर औ’

      निर्मल गंगा मधुशालाI

      -पीयूष यादव

       

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        मृत्यु


        मिट्टी से मिलकर के मिट्टी

        हो जाती है मधुहाला,

        मादकता भी रूप बदल कर

        बन जाती है मृगछाला,

        साकी अंतस से बैरागी

        होकर इत-उत फिरता है,

        और चिरंतन नम होकर के

        रह जाती है मधुशालाI

        -पीयूष यादव

         

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