फेर में…


अक्सर देखा है कि जीवन संचय में ही बीत जाता हैI इश्वर स्वयं आकर भी कह दें कि अब संचय बंद करो… जीवन का एक ही दिन बचा है; तो लोग उस पर भी विश्वास न करेंI

 

एक दिवस ही शेष बचा है

संचित है कितनी हाला,

पर एक दिवस या एक बरस

इस ने थोड़ा भ्रम डाला,

सारा जीवन ठोकर खाई

अंत समय कुछ अच्छा हो,

लुट जाए ना इसी फेर में

रब्बा मेरी मधुशालाI

-पीयूष यादव

 


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