March 6th, 2010
ये कोई उपदेश नहीं हैं
ना आदर्शों का जाला,
चिंतन के बाज़ार गर्म यूँ
भटका जित भोला-भाला ,
पाप-पुण्य का ज्ञान तुम्हें इस
जग में सबसे ज़्यादा है
मुझपे मदिरा की दो बूँदें
तुम पर पूरी मधुशालाI
-पीयूष यादव
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February 6th, 2010
ऐसी मदिरा जिसमें खुद को
ढूँढ सके पीनेवाला,
साकी जो मद्धम-सी कर दे
तीव्र वेदना की ज्वाला ,
मतवाले औ’ मदिरालय में
अंतर मुश्किल हो जाये,
ऐसी साख जहाँ हो सखि मैं,
ढूँढ रहा वो मधुशालाI
-पीयूष यादव
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January 6th, 2010
आसक्ति में और ना कुछ बस
छिपी अश्रुओं की हाला,
पर एकाकी जीवन तो है
मधु से रीता इक प्याला,
सन्नाटे औ’ कोलाहल में
इसे चुनूँ या उसे चुनूँ,
भीतर मूक तमा है भीषण
बाहर बहकी मधुशालाI
-पीयूष यादव
मूक तमा – चुप अँधेरा
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December 24th, 2009
गंगा का आकर्षण अक्सर अंतिम चौखट तक साथ देता है. ये अद्भुत है.
संसृति के नियमों में सिर्फ आकर्षण ही स्थायी है..ज़िन्दगी का क्रम तो चलता रहता है. जहाँ आज मैं हूँ, कल कोई और होगा. जो भाव मेरे मन में हैं, कल किसी और के मन में होंगे ..
गंगा के पावन तट पर इक
मीठी कॉफ़ी का प्याला,
सुरसरिता का आकर्षण औ’
उस पर श्रद्धा की हाला,
मुझको ये आकर्षण कल फिर
गंगा तट तक लायेगा
तब विस्मित दूर वहाँ होगा
मैं नित बहती मधुशालाI
-पीयूष यादव
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