September 23rd, 2009
दुनिया ने तजुर्बातो-हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है, लौटा रहा हूँ मैं
-साहिर
जो पल आकर गया नहीं वो
हुआ सुखन की मृदुमाला,
स्मृति के पन्नों को करके
चला सुनहरा मतवाला,
जो कुछ पाया, जो देखा है
सब कुछ ही ले आया हूँ,
मेरी पुस्तक अनुभव की है
छोटी-सी इक मधुशालाI
-पीयूष यादव
Moments which did not leave me became my poetry.They kept painting my memories in golden shades.
Whatever I have got and whatever I have seen, thus is before you. My book is an unpretentious madhushala of my inconsequential experiences.
-Peeyush Yadav
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September 19th, 2009
समुद्र के किनारे कई घरोंदे नज़र आते हैं, कुछ नए कुछ पुराने, कुछ सुन्दर कुछ साधारणI इन घरोंदों के किनारे, समुद्र के साथ साथ, एक नदी भी बहती हैI अपनी तरंगों को शांत करती हुई, समुद्र के तूफान से नावाकिफI जहाँ समुद्र इन घरोंदों को तोड़ता है, तो वहीँ यह नई, ताजा और अल्मान नदी उन्हें जोड़ती हैI
यह गमगुसार और चारासाज़ नदी अपने मन की कहती ज़रूर है, पर नसीहत नहीं देतीI
नई सदी में रूप बदलता
नूतन गीतों का प्याला,
नई सदी में रंग बदलती
परिचित भावों की हाला,
पर अल्मान सदा रहता है
अंतस का एकाकीपन,
तुम को मन की बात सुनाती
प्रीत-सहेली मधुशालाI
-पीयूष यादव
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