अंतस का एकाकीपन


समुद्र के किनारे कई घरोंदे नज़र आते हैं, कुछ नए कुछ पुराने, कुछ सुन्दर कुछ साधारणI इन घरोंदों के किनारे, समुद्र के साथ साथ, एक नदी भी बहती हैI अपनी तरंगों को शांत करती हुई, समुद्र के तूफान से नावाकिफI जहाँ समुद्र इन घरोंदों को तोड़ता है, तो वहीँ यह नई, ताजा और अल्मान नदी उन्हें जोड़ती हैI
यह गमगुसार और चारासाज़ नदी अपने मन की कहती ज़रूर है, पर नसीहत नहीं देतीI

 

नई सदी में रूप बदलता

नूतन गीतों का प्याला,

नई सदी में रंग बदलती

परिचित भावों की हाला,

पर अल्मान सदा रहता है

अंतस का एकाकीपन,

तुम को मन की बात सुनाती

प्रीत-सहेली मधुशालाI

-पीयूष यादव

 

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