पाना चाहा ब्रह्म मगर फिर
हाथ लगी केवल माला,
बना नमाज़ी पर न कभी भी
मिल पाया अल्ला ताला,
मादकता ने भेद मुझे ये
रात बज़्म में बतलाया,
मदिरा प्याले साधन हैं खुद
नहीं प्रिये ये मधुशालाI
-पीयूष यादव
बज़्म – महफ़िल
पाना चाहा ब्रह्म मगर फिर
हाथ लगी केवल माला,
बना नमाज़ी पर न कभी भी
मिल पाया अल्ला ताला,
मादकता ने भेद मुझे ये
रात बज़्म में बतलाया,
मदिरा प्याले साधन हैं खुद
नहीं प्रिये ये मधुशालाI
-पीयूष यादव
बज़्म – महफ़िल
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