ये कोई उपदेश नहीं हैं
ना आदर्शों का जाला,
चिंतन के बाज़ार गर्म यूँ
भटका जित भोला-भाला ,
पाप-पुण्य का ज्ञान तुम्हें इस
जग में सबसे ज़्यादा है
मुझपे मदिरा की दो बूँदें
तुम पर पूरी मधुशालाI
-पीयूष यादव
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हार्डकोर भाईसाब
इकदम हार्डकोर
कभी आराम से मिलके हमें इनका अर्थ समझा दो …..
May 19th, 2010
Reply to “चिंतन के बाज़ार”