ऐसी मदिरा जिसमें खुद को
ढूँढ सके पीनेवाला,
साकी जो मद्धम-सी कर दे
तीव्र वेदना की ज्वाला ,
मतवाले औ’ मदिरालय में
अंतर मुश्किल हो जाये,
ऐसी साख जहाँ हो सखि मैं,
ढूँढ रहा वो मधुशालाI
-पीयूष यादव
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9 Comments, Comment or Ping
ऐसी साख जहाँ हो सखि मैं,
ढूँढ रहा वो मधुशालाI nice
February 6th, 2010
राह पकड़ तू चलता जा , पा जाएगा मधुशाला
February 6th, 2010
बहुत खूब! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!
February 9th, 2010
अच्छी कोशिश थी. पर और महेनत की जरुरत है!!
February 10th, 2010
@ सुमन, रश्मि, उर्मी, राहुल
अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिए शुक्रिया!
February 11th, 2010
इसे यहाँ प्रस्तुत करने के लिए शुक्रिया
February 12th, 2010
श्रमिक से छिन गई कुदाले ,
गैया छिन गई ग्वालो से ,
हाकिम से हुक्कामी छिन गई ,
बचपन छिन गया लालों से ,
यदि सूरा का जाल न होता ,
देवदास यूं न मरता ,
पा जाता शायद पारो को ,
बिना पिए उद्यम करता ,
May 17th, 2010
kya baat hai irshad peene walo ko bulwake khul va dena madhushala
April 22nd, 2011
ऐसी मदिरा जिसमें खुद को
ढूँढ सके पीनेवाला,
साकी जो मद्धम-सी कर दे
तीव्र वेदना की ज्वाला ,
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं…
December 4th, 2011
Reply to “मैं ढूँढ रहा वो मधुशाला”