आकर्षण ये ख़त्म न हो…


जहाँ मंजिल का महत्व कम और रास्ते का ज़यादा होता है..

 

आकर्षण ये ख़त्म न हो औ’

रहे रिझाती मधुबाला,

अधर रहें लालायित यूँहीं

पाने को मादक हाला,

मिले न मंजिल मुझे अगर तो

इसका कोई रंज नहीं,

ख़ुदा करे बस इतना मुझको

रहे लुभाती मधुशालाI

-पीयूष यादव

 

2 Comments, Comment or Ping

  1. good

    November 13th, 2009

  2. naveli

    शुक्रिया..

    November 14th, 2009

Reply to “आकर्षण ये ख़त्म न हो…”

Powered By Indic IME