अपने नज़दीक लोगों को हमेशा के लिए दूर जाते और बिछुड़ते देखा…
अंतिम पीड़ा, अंतिम भय है
रस्ते का अंतिम पाला,
ध्यान मग्न, अहसास हीन है
बेखुद सबसे मतवाला,
सारे बंधन, सारे मज़हब
धीरे धीरे टूट रहे,
अन्जान क्षितिज पर डूब रही
पल-पल जीवन मधुशालाI
-पीयूष यादव
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