गाँधी जी को बताया गया कि ‘बच्चन’ मधुशाला गा रहे हैं और लोग भी पीछे-पीछे गुनगुना रहे हैंI आप रोकें, नहीं तो अनर्थ हो जाएगाI गाँधी जी ने बच्चन जी को बुलाया और मधुशाला से कुछ सुनाने को कहाI सुनकर पता चला कि मधुशाला तो एक प्रगतिशील समाज का आईना है, जिसमें ‘बच्चन’ ने अपने संसार के बिम्ब देखे हैंI गाँधी जी को मधुशाला की सोच और सरलता खूब भायीI
और क्यों न भाती, कुछ चीज़ों का अपना ही आकर्षण होता है.. हरे भरे पेड़ों का, जंगलों का, समुद्र की लहरों का, मद्धम चाँद और टिमटिमाते सितारों का, आज़ाद हसरतों का, आज-सी सितम्बर की सुबहों और अपने एकाकीपन काI ये आकर्षण ख़त्म नहीं होता, बढ़ता जाता हैI ये सरलता का आकर्षण है (मधुशाला का आकर्षण है), जो हमेशा ताज़ा रहता हैI मुझे तो लगता है कि सरलता ही आत्मा है, जो हमेशा जिंदा रहती हैI
मधुशाला के छंद में मैंने भी कुछ कवितायें लिखी हैंI इन्हें कुछ-कुछ दिनों में, हो सका तो अपनी किसी बात के साथ, इस ब्लॉग (चिट्ठे) पर लिखता रहूँगाI
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Peeyush Yadav
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Bangalore